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फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग - डेरिवेटिव के प्रकार



डेरिवेटिव क्या हैं?

डेरिवेटिव ऐसा वित्तीय साधन है जिनका मूल्य अंतर्निहित विभिन्न वस्तुओं पर निर्भर करता है. जैसा कि नाम से पता चलता है, यह अपना मूल्य अंतर्निहित संपत्ति से उत्पन्न करता है. उदाहरण के लिए-कोई डेरिवेटिव किसी शेयर, या किसी महत्वपूर्ण उद्देश्य के लिए बनाया गया हो सकता है. सबसे अधिक सामान्य अंतर्निहित संपत्तियों में स्टॉक, बॉन्ड, कमोडिटी आदि शामिल होते हैं.


आइये एक उदाहरण के माध्यम से डेरिवेटिव अनुबंध देखते और समझते हैं

SUNNY स्क्रिप 'RELIANCE' में फ्यूचर अनुबंध खरीदता है. यदि RELIANCE का मूल्य 500 रु. बढ़ता है, तो उसे 500 रु. का लाभ होगा. यदि मूल्य नहीं बदलता है, तो SUNNY को कुछ नहीं मिलेगा. यदि RELIANCE के स्टॉक का मूल्य 800 रु. गिर जाता है, तो उसे 800 रु. का नुकसान होगा.


जैसा कि हम देख सकते हैं, ऊपर दिया गया अनुबंध RELIANCE स्क्रिप पर निर्भर करता है, जो कि अंतर्निहित प्रतिभूति है. उसी तरह से, फ्यूचर ट्रेडिंग इंडिसेस पर भी हो सकती है. निफ्टी फ्यूचर, स्टॉक बाजार में बेहद सामान्य तौर पर ट्रेड किया जाने वाला डेरिवेटिव अनुबंध है. निफ्टी फ्यूचर के मामले में अंतर्निहित प्रतिभूति इंडेक्स निफ्टी होगी.


अलग-अलग प्रकार के डेरिवेटिव क्या है?

डेरिवेटिव मूल रूप से निम्न प्रकारों में वर्गीकृत होते हैं:

  1. फ्यूचर/फ़ॉरवर्ड

  2. ऑप्शन

  3. स्वैप

फ़्यूचर क्या है?

कोई फ्यूचर अनुबंध डेरिवेटिव साधन, या वित्तीय अनुबंध का प्रकार है जहाँ दोनों पक्ष किसी मूल्य पर भविष्य में डिलीवरी के लिए वित्तीय साधनों या भौतिक कमोडिटी के लेनदेन के लिए सहमत होते हैं.


नीचे बताया गया उदाहरण फ्यूचर ट्रेडिंग की अवधारणा को सरल शब्दों में बताएगा:


केस 1:

वैभव एक लेपटॉप खरीदना चाहता हैं, जिसकी कीमत 50000 रुपए हैं, लेकिन नगद पैसों की कमी के कारण वह आज से 2 महीने बाद खरीदने का निर्णय लेता है. हालांकि उसे लगता है कि आज से 2 महीने बाद लेपटॉप के दाम इनपुट/निर्माण लागत के कारण बढ़ सकते हैं. अपनी सुरक्षा के लिए, वैभव लेपटॉप निर्माता से एक अनुबंध करता है जिसके अनुसार अब वह आज से 2 महीने बाद 50000 रुपए में लेपटॉप खरीदेगा. वह सचेत है और 2 महीने बाद आज के मूल्य पर लेपटॉप खरदने के लिए सहमत हैं.


फ़ॉरवर्ड अनुबंध इस तरह परिपक्वता पर तय किया जाएगा. निर्माता दो महीने बाद वैभव को वस्तु प्रदान करेगा और उसके बदले में वैभव नकद भुगतान करेगा.


इसलिए एक फ़ॉरवर्ड अनुबंध डेरिवेटिव लेनदेन का सबसे आसान तरीका है. यह किसी निर्दिष्ट मूल्य के लिए भविष्य में किसी निश्चित समय पर कोई वस्तु खरीदने या बेचने का अनुबंध है. अनुबंध करते समय कोई नकद लेनदेन नहीं किया जाएगा.


इंडेक्स फ्यूचर क्या है?

जैसा कि ऊपर बताया गया है, फ्यूचर वे डेरिवेटिव हैं जहाँ दो पक्ष वित्तीय साधनों या भौतिक कमोडिटी के भविष्य में किसी निश्चित मूल्य पर लेनदेन करने पर सहमत होते हैं. इंडेक्स फ्यूचर वे फ्यूचर अनुबंध है जहाँ स्टॉक इंडेक्स (निफ्टी या सेंसेक्स) अंतर्निहित है और किसी ट्रेडर को पूरे बाजार परिदृश्य पर नज़र डालने में मदद करते हैं.



लोट ( LOT SIZE) का क्या अर्थ है?

लोट ( LOT SIZE) का अर्थ उस मात्रा से है जिसमें बाजार में कोई निवेशक किसी विशेष स्क्रिप के डेरिवेटिव का व्यापार कर सकता है. उदाहरण के लिए निफ्टी फ्यूचर में लोट ( LOT SIZE) 100 या 100 के गुणज में है. इसलिए यदि किसी व्यक्ति ने निफ्टी फ्यूचर का एक लोट खरीदा, तो मूल्य उस समय पर 100*निफ्टी इंडेक्स मूल्य होगा.


इसी प्रकार कई अन्य स्क्रिप जैसे इंफोसिस, रिलाइंस के लोट खरीदे जा सकते हैं और प्रत्येक में अलग-अलग लोट ( LOT SIZE) हो सकता है. एनएसई में फ्यूचर और ऑप्शन अनुबंध के लिए दो लाख रुपए का न्यूनतम मूल्य तय किया है. लोट ( LOT SIZE) उन न्यूनतम शेयरों पर निर्धारित किए जाते हैं जिन पर कोई ट्रेडर यथास्थिति बनाए रख सकता है.



फ़्यूचर ट्रेडिंग में समाप्ति दिनांक से क्या तात्पर्य है?

प्रत्येक वैभव किए गए अनुबंध की समाप्ति दिनांक होती है. इसका अर्थ उस अवधि से है जिसमें कोई फ्यूचर अनुबंध अवश्य पूर्ण हो जाना चाहिए. फ्यूचर अनुबंधों की अवधि 1 महीना, 2 महीना या अधिकतम 3 महीनों की हो सकती है. प्रत्येक अनुबंध समापन माह के अंतिम गुरुवार को समाप्त हो जाता है और उसी दौरान अनुबंध की समाप्ति के बाद ट्रेडिंग के लिए नया अनुबंध किया जाता है.


डेरिवेटिव के क्या उपयोग हैं?

डेरिवेटिव उपयोग के कई प्रकार हैं जैसे कि:

  • हैजिंग

  • स्पेक्यूलेशन और

  • आर्बिट्रेज


ऑप्शन ट्रेडिंग

ऑप्शन क्या हैं?

आपके द्वारा ऑप्शन ट्रेडिंग शुरू करने से पहले आप क्या पूर्ण करने की आशा रखते हैं, उसकी समझ होना बेहद जरूरी है. केवल तभी आप ऑप्शन ट्रेडिंग रणनीति पर ध्यान केंद्रित कर पाएंगे. आइये पहले ऑप्शन की अवधारणा को समझते हैं.

ऑप्शन डेरिवेटिव नामक प्रतिभूतियों के वर्ग का भाग होता है.


ऑप्शन की अवधारणा को इस उदाहरण से समझा जा सकता है. उदाहरण के लिए, जब आप कुछ संपत्ति खरीदने की योजना बनाते हैं, तो आपने अन्य ऑप्शन का मूल्यांकन करने के दौरान उसे कुछ समय के लिए होल्ड करने के लिए नॉन-रिफंडेबल डिपॉज़िट रखा हो सकता है. यह ऑप्शन के प्रकार का उदाहरण है.


उसी प्रकार, शायद आपने सुना हो कि बॉलीवुड किसी उपन्यास पर कोई ऑप्शन खरीद रहा है. किसी उपन्यास को ऑप्शन करने में निर्देशक निर्दिष्ट दिनांक से पहले उपन्यास पर फिल्म बनाने के अधिकार खरीदता है. मकान और स्क्रिप्ट वाले दोनों मामलों में, किसी ने निश्चित दिनांक से पहले निश्चित मूल्य पर कोई उत्पाद खरीदने के अधिकार के लिए कुछ पैसा रखा है.

स्टॉक ऑप्शन खरीदना भी कुछ ऐसा ही है. ऑप्शन वे अनुबंध हैं जो निश्चित समय के भीतर धारक को निश्चित मूल्य पर निश्चित स्टॉक की तय मात्रा बेचने या खरीदने का अधिकार देते हैं. कोई पुट ऑप्शन धारक को प्रतिभूति बेचने का अधिकार देता है, कोई कॉल ऑप्शन प्रतिभूति खरीदने का अधिकार देता है. हलांकि इस प्रकार के अनुबंध धारक को अधिकार देते हैं, बल्कि निश्चित दिनांक से पहले निश्चित मूल्य पर स्टॉक व्यापार करने की कोई बाध्यता नहीं देते हैं. कई व्यक्तिगत निवेशक को ऑप्शन उपयोगी साधन लगता है क्योंकि वे इसे निम्न तरह से उपयोग कर सकते हैं:

ए) लेवरेज के प्रकार के रूप में या

बी) बीमा के प्रकार के रूप में.

ऑप्शन में ट्रेड करना आपको शेयर का पूरा मूल्य दिए बिना शेयर के मूल्य से लाभ उठाने देता है. वे आपको पूर्ण रूप से शेयर खरीदने के लिए आवश्यक पैसों की तुलना में बेहद कम पैसों से स्टॉक के शेयर पर सीमित नियंत्रण प्रदान करते हैं.

बीमा के रूप में उपयोग किए जाने पर ऑप्शन आपको सीमित समय के लिए खरीदने या बेचने का अधिकार प्रदान करके किसी निश्चित प्रतिभूति के मूल्यों में उतार चढ़ाव से आपकी सुरक्षा करते हैं.

ऑप्शन स्वाभविक रूप से जोख़िमभरा निवेश साधन है केवल अनुभवी एवं ज्ञानी निवेशकों के लिए उचित है जो कि बाजार स्थिति को करीब से देखने के लिए तैयार है और अनुमान लगाकर संभावित नुकसान उठाने के लिए वित्तीय रूप से तैयार हैं.

अलग-अलग प्रकार ऑप्शन क्या हैं? ऑप्शन को लाभ कमाने/हानि घटाने के लिए रणनीतिक उपाय के रूप में कैसे उपयोग किया जा सकता है?

ऑप्शन को निम्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

ए) कॉल ऑप्शन

बी) पुट ऑप्शन

जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, ऑप्शन के दो प्रकार हैं, कॉल और पुट. कॉल ऑप्शन धारक को समापन अवधि से पहले किसी भी समय स्ट्राइक मूल्य पर अंतनिर्हित स्टॉक खरीदने का अधिकार देता है. समान्य तौर पर, अंतनिर्हित साधनों का मूल्य बढ़ने पर कॉल ऑप्शन का मूल्य भी बढ़ता है.

इसके विपरीत पुट ऑप्शन समापन दिनांक को या उसके पहले स्ट्राइक मूल्य पर धारक को अंतर्निहित शेयर बेचने का अधिकार प्रदान करते हैं. अंतर्निहित साधनों का मूल्य कम होने पर पुट ऑप्शन का मूल्य बढ़ता है. पुट ऑप्शन वह है जिसमें कोई व्यक्ति बाद में होने वाली मूल्य गिरावट के लिए कोई स्टॉक सुनिश्चित कर सकता है. यदि आपके स्टॉक का मूल्य कम होता है, तो आप अपना पुट ऑप्शन लेकर इसे पूर्व में निर्धारित मूल्य स्तर पर बेच सकते हैं. यदि स्टॉक मूल्य ऊपर जाता है, तो आपको बस केवल चुकायी गई प्रीमियम राशि की हानि होती है.

ध्यान रखें कि समाचार पत्रों और ऑनलाइन उदाहरणों में आप कॉल को सी के रूप में और पुट को पी के रूप में संक्षिप्त किया हुआ देखेंगे.

नीचे दिए उदाहरणों में पुट ऑप्शन का स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है:


केस 1:

Saurabh ने June TCS June 3000 पुट का 1 लोट खरीदता है और 250 का प्रीमियम देता है, यह अनुबंध Saurabh को वर्तमान दिनांक से June के अंत तक 3000 रुपए के 100 शेयर खरीदने देता है. इसका लाभ उठाने के लिए, Saurabh को बस 25000 रुपए का प्रीमियम देना है (250 रुपए एक शेयर के लिए कुल 100 शेयर).

पुट के खरीदार ने बेचने का अधिकार खरीद लिया है. पुट के स्वामी के पास बेचने का अधिकार है.


केस 2:

यदि आप सोचते हैं कि कोई विशेष स्टॉक जैसे ‘’ TATA MOTORS ’’ का फरवरी के महीने में मूल्य अधिक है, और भविष्य में मूल्यों में सुधार हो सकता है. हालांकि आप मूल्य बढ़ने के मामले में कोई खतरा नहीं उठाना चाहते हैं. तो आपके लिए सबसे अच्छा विकल्प स्टॉक पर पुट ऑप्शन लेना रहेगा.

मान लीजिए स्टॉक के लिए भाव इसके अंतर्गत हैं:

स्पोट 1040 रुपए

1050 रुपए 10 पर June पुट

1070 रुपए 30 पर June पुट

इसलिए आपने स्ट्राइक मूल्य 1070 और पुट मूल्य 30 रुपए पर 1000 ‘’रे टेक्नोलॉजिस’’ पुट खरीदे हैं. आप 30000 रुपए पुट प्रीमियम के रूप में चुकाते हैं.

दो अलग-अलग परिदृश्यों में आपकी स्थिति पर नीचे चर्चा की गई है:

1. TATA MOTORS का June स्पोट मूल्य = 1020

2. TATA MOTORS का June स्पोट मूल्य = 1080

पहली स्थति में आपके पास 1070 रुपए पर ‘’ TATA MOTORS ’’ के 1000 शेयर बेचने का अधिकार है जिनका मूल्य 1020 रुपए है. यह ऑप्शन आज़मा कर आप (1070-1020) = 50 रुपए प्रति पुट प्राप्त करते हैं, जो कि 50,000 रुपए है. इस स्थिति में आपकी कुल आय (50000-30000) = 20,000 रुपए होती है.


दूसरी मूल्य स्थिति में, मूल्य स्पोट बाजार से अधिक है, इसलिए आप पुट लेकर कम मूल्य पर नहीं बेचेंगे. आपको पुट ऑप्शन को बिना आज़माएं समाप्त करने की अनुमति देनी होगी. इस प्रक्रिया में आप केवल 30000 रुपए के चुकाए गए प्रीमियम का नुकसान उठाएंगे.


अस्थिर ब्याज क्या है?

ऑप्शन अनुबंधों और/या फ्यूचर अनुबंधों की कुल संख्या जो कि विशेष दिन पर बंद या वितरित नहीं हुए इसलिए आज़माएं नहीं गए हैं, समाप्त हो गए या वितरण के माध्यम से पूर्ण नहीं किए गए हैं उसे अस्थिर ब्याज कहा जाता है.

इंडेक्स फ्यूचर क्या है?

जैसा कि ऊपर बताया गया है, फ्यूचर वे डेरिवेटिव है जिसके लिए दो पक्ष वित्तीय साधनों या भौतिक कमोडिटी के भविष्य में किसी निश्चित मूल्य पर लेनदेन करने पर सहमत होते हैं. इंडेक्स फ्यूचर वे फ्यूचर अनुबंध है जहाँ स्टॉक इंडेक्स (निफ्टी या सेंसेक्स) अंतर्निहित है और पूरे बाजार परिदृश्य पर नज़र डालने में मदद करता है.


ऑप्शन प्रीमियम, स्ट्राइक मूल्य और स्पोट मूल्य शब्दों का क्या अर्थ है? ( OPTION PREMIUM STRIKE PRICE AND SPOT PRICE)

  1. कॉल ऑप्शन/पुट ऑप्शन के लिए कोई व्यक्ति जो मूल्य चुकाता है उसे ऑप्शन प्रीमियम कहते हैं.

  2. स्ट्राइक मूल्य उस विशेष स्टॉक को निश्चित मूल्य पर खरीदने और बेचने का अधिकार सुरक्षित रखता है. दूसरे शब्दों में स्ट्राइक मूल्य वह निश्चित मूल्य है जिस पर स्टॉक ऑप्शन का कोई धारक स्टॉक खरीद सकता है. यदि आप स्टॉक खरीदने के लिए ऑप्शन का उपयोग नहीं करने का निर्णय लेते हैं, और आप ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं हैं, तो ऑप्शन प्रीमियम ही केवल लागत होती है. किसी ऑप्शन का प्रीमियम = ऑप्शन का असली मूल्य + ऑप्शन समय मूल्य, ऑप्शन अनुबंध आज़माते समय ऑप्शन धारक द्वारा बताया गया प्रति शेयर मूल्य जिसके लिए अंतर्निहित स्टॉक खरीदा (कॉल के लिए) या बेचा (पुट के लिए) जा सकता है, उसे स्ट्राइक मूल्य कहते हैं.

  3. स्पोट मूल्य वर्तमान मूल्य है जिस पर निश्चित समय या स्थान पर कोई विशेष कमोडिटी खरीदी या बेची जा सकती है.

  4. निपटान मूल्य का क्या अर्थ है? EXCERCISE VALUE किसी ट्रेडिंग दिवस पर अनुबंध के लिए चुकाया गया अंतिम मूल्य. निपटान मूल्य खुली ट्रेड इक्विटी, मार्जिन कॉल और डेरिवेटिव के लिए इनवॉइस मूल्य निर्धारित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं.


कोई व्यक्ति ऑप्शन का मूल्य कैसे निर्धारित कर सकता है?

कई कारक ऑप्शन का मूल्य निर्धारित करते हैं.

अंतर्निहित स्टॉक का व्यवहार ऑप्शन के मूल्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है. कोई विशेष स्टॉक भविष्य में कैसे व्यवहार करेगा इस बारे में निवेशकों की अलग-अलग राय है और इसलिए किसी दिए गए ऑप्शन के मूल्य से असहमत हो सकते हैं.

इसके अलावा, समाप्ति दिनांक के समीप आने पर ऑप्शन का मूल्य घटता है. इसलिए, इसका मूल्य समाप्त होने में शेष समय पर काफी निर्भर करता है.


स्वाभाविक और समय मूल्य ( INTRINSIC VALUE AND TIME VALUE)

किसी ऑप्शन का मूल्य उसके स्वाभाविक मूल्य और समय मूल्य से मिलकर बनता है.

किसी ऑप्शन अनुबंध की कीमत उसके उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने की संभावनाओं से आंकी जाती है. ऑप्शन की भाषा में, जिसका निर्धारण इस आधार पर होता है, कि क्या ऑप्शन - उसकी सीमा-समाप्ति पर इन दि मनी या आउट ऑफ़ मनी है या होने की संभावना है. स्वाभाविक मूल्य ऑप्शन किस हद तक ‘इन दि मनी है’. इसलिए यह वाक्यांश स्वाभाविक मूल्य के साथ ऑप्शन का वर्णन करने के लिए उपयोग किया गया विशेषण है. यदि स्पोट मूल्य स्ट्राइक मूल्य से अधिक होते हैं, तो कॉल ऑप्शन धन में होता है. यदि स्पोट मूल्य स्ट्राइक मूल्य से कम है, तो पुट ऑप्शन धन में होता है.

इसकी गणना ऑप्शन स्ट्राइक मूल्य को स्पोट मूल्य से घटा कर की जाती है. किसी धन की गैर-मौजूदगी वाले ऑप्शन का स्वाभाविक मूल्य शून्य होता है.


उदाहरण के लिए, यदि एक्सवाईजेड 58 रुपए पर ट्रेड कर रहा है और जून 55 कॉल 4 रुपए पर ट्रेड का रहा है, तो स्वाभाविक मूल्य की गणना करने के लिए 58 से 55 को घटाने पर 3 रुपए का स्वाभाविक मूल्य प्राप्त होगा. शेष 1 रुपए को बाहरी या समय मूल्य के रूप में जाना जाता है.


समय मूल्य स्वाभाविक मूल्य के ऊपर की राशि है जो खरीदार किसी ऑप्शन के लिए चुकाता है. समय मूल्य खरीदते समय, कोई ऑप्शन खरीदार मानता है कि ऑप्शन समय-सीमा समाप्त होने से पहले मूल्य में बढ़ेगा. ऑप्शन की समय सीमा समाप्त होने पर, इसका समय मूल्य कम होने लगता है.


सैद्धांतिक मूल्य

सैद्धांतिक मूल्य किसी ऑप्शन का ऑब्जेक्टिव मूल्य है. यह दिखाता है कि किसी ऑप्शन में समय-मूल्य कितना बचा है. किसी ऑप्शन के सैद्धांतिक मूल्य की गणना करने के सबसे आम तौर पर उपयोग किए जाने वाले फ़ॉर्मूले को ब्लैक-स्कूल मॉडल कहा जाता है.

इस मॉडल में स्टॉक का मूल्य, ऑप्शन स्ट्राइक मूल्य, समय समाप्ति से पहले शेष समय, अंतर्निहित स्टॉक की अस्थिरता, स्टॉक का लाभांश और ऑप्शन के सैद्धांतिक मूल्य पर आते समय वर्तमान ब्याज दर.

यद्यपि कोई ऑप्शन इसके सैद्धांतिक मूल्य से कम या अधिक में व्यापार कर सकता है, बाजार सैद्धांतिक मूल्य को ऑप्शन के मूल्य के लक्ष्य मानक के रूप में देखता है. यह समय के साथ सभी ऑप्शन मूल्य को उनके सैद्धांतिक मूल्य की तरफ ले जाता है.


सैद्धांतिक मूल्य के घटक

अस्थिरता ( VOLATILITY)

अंतर्निहित स्टॉक की अस्थिरता ऑप्शन का मूल्य निर्धारित करने वाला प्रमुख घटक है. अक्सर, स्टॉक की अस्थिरता बढ़ने पर ऑप्शन का मूल्य बढ़ता है. किसी अस्थिर स्टॉक के व्यवहार का पता लगाने में आने वाली कठिनाई ऑप्शन विक्रेता को अतिरिक्त जोख़िम के लिए उच्च मूल्य का मांग करने की अनुमति देती है.

अस्थिरता के दो प्रकार हैं, ऐतिहासिक और अंतर्निहित. जैसा कि शब्द से पता चलता है, किसी स्टॉक की ऐतिहासिक अस्थिरता पिछले व्यवहार के आधार पर स्टॉक गति का मापन है.

इसके विपरीत अंतर्निहित अस्थिरता की गणना ऑप्शन मूल्य का उपयोग करके की जाती है. यह स्टॉक गति का मापन है कि कैसे बाजार वर्तमान में ऑप्शन का मूल्यांकन कर रहा है.


लाभांश

कॉल ऑप्शन के मालिक के रूप में आप कभी भी स्टॉक पर अपने अधिकार का उपयोग कर सकते हैं और इसके द्वारा चुकाया गया कोई भी लाभांश प्राप्त कर सकते हैं.

ब्याज दर

यदि आप स्टॉक की बजाय ऑप्शन खरीदते हैं, तो आप पहले से कम दिया हुआ धन निवेश करते हैं.

समय-सीमा समाप्ति तक दिन

िरर्थक संपत्ति के रूप में ऑप्शन, प्रत्येक दिन के गुजरने के साथ थोड़ा कम हो जाता है. इसलिए इसके मूल्य की गणना इसके जीवन में शेष दिनों से की जाती है.


ऑप्शन के प्रकार

ऑप्शन ट्रेडिंग की मूल जानकारी को जानने के बाद आइए, अब ऑप्शन के प्रकारों पर बात करते हैं।

ऑप्शन ट्रेडिंग में दो पक्ष शामिल होते हैं- ऑप्शन के ख़रीदार (Buyer) और ऑप्शन के विक्रेता (Seller)। इसमें ख़रीदार को अपने ऑप्शन को इस्तेमाल करने या ना करने का पूरा अधिकार होता है, लेकिन यदि ख़रीदार इसको बेचने का फ़ैसला कर ले तो विक्रेता इसे बेचने के लिए बाध्य होते है।एक ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को लिखना और बेचना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन सही समय पर सही क़दम उठाए जाने पर इसमें बहुत लाभ भी हो सकता है।

ऑप्शन ट्रेडिंग को दो अलग अलग तरीक़ों से किया जा सकता है

यूरोपीय: यूरोपीय ऑप्शन ट्रेडिंग में, ऑप्शन का इस्तेमाल केवल ऑप्शन की एक्सपायरी डेट(समाप्ति तिथि) पर ही किया जा सकता है,जो एक पूर्व निर्धारित समय है।


अमेरिकी: अमेरिकी ऑप्शन ट्रेडिंग में, ऑप्शन का इस्तेमाल ऑप्शन की खरीद और उसकी एक्स्पाइरी डेट((समाप्ति तिथि) के बीच कभी भी किया जा सकता है।


लेकिन हमें यह ध्यान देना चाहिए कि भारत में ऑप्शन ट्रेडिंग करने के लिए केवल यूरोपीय तरीका ही उपलब्ध है।

जैसा कि चर्चा की गई है, एक ऑप्शन ट्रेडर अपनी सिक्योरिटीज को खरीदने या उन्हें बेचने के ऑप्शन को ही खरीद सकता है।

अब यह उस पर निर्भर करता है, क्योंकि ऑप्शन ट्रेडिंग दो प्रकार से हो सकती है:


कॉल ऑप्शन: कॉल ऑप्शन दो पार्टियों के बीच एक तरह का डेरिवटिव कॉन्ट्रैक्ट होता है, जिसमें कॉल ऑप्शन के ख़रीदार को अपने ऑप्शन का इस्तेमाल करके किसी विशेष एसेट्स को एक नियत अवधि और नियत मूल्य पर ख़रीदने का अधिकार होता है।


यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि कॉल ऑप्शन के खरीददार को एसेट्स खरीदने का केवल अधिकार होता है वह उसका इस्तेमाल करने के लिए बाध्य नहीं होता है।


उदाहरण के लिए, यदि Wipro का स्टॉक ₹273 प्रति शेयर पर ट्रेड हो रहा है और ट्रेडर ₹275 प्रति शेयर ख़रीदने के लिए कॉल ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में प्रवेश करता है तो कॉल ऑप्शन के ख़रीदार को ₹275 प्रति शेयर पर ही स्टॉक खरीदने का अधिकार है यह मूल्य स्ट्राइक प्राइस कहलाता है।


ट्रेडर इस कॉन्ट्रैक्ट की एक्सपायरी डेट (समाप्ति तिथि) जो की 30 अप्रैल को मौजूदा स्टॉक मूल्य के बावजूद स्ट्राइक मूल्य पर ख़रीद सकता है।


इसलिए, इस मामले में, भले ही शेयर की कीमत ₹280 हो जाए, लेकिन ट्रेडर तब भी ₹275 पर शेयर खरीद सकता है, जब तक कि कॉल ऑप्शन समाप्त नहीं हुआ हो।


पुट ऑप्शन: पुट ऑप्शन एक ऑप्शन ट्रेडिंग कॉन्ट्रैक्ट है जिसमें खरीदार को अपनी आधारभूत फाइनेंशियल को भविष्य में निर्धारित समय के दौरान निर्धारित मूल्य पर बेचने का अधिकार होता है।


इस तरीके से सिक्योरिटीज का मालिक अपनी सिक्योरिटीज की सेल वैल्यू को पूर्व में निर्धारित करके मार्केट में होने वाली गिरावट के खिलाफ खुद को सुरक्षित कर सकता है।


अगर सिक्योरिटीज की क़ीमत एक्सपायरी डेट (समाप्ति तिथि) से पहले स्ट्राइक मूल्य से नीचे आती है तो ट्रेडर अपने करंट मार्केट वैल्यू की जगह अपनी स्ट्राइक वैल्यू पर इन सिक्योरिटीज को बेच कर इसमें होने वाले नुकसान कम करके उससे बच जाता है।


हालांकि, अगर सिक्योरिटीज की कीमत समान रहती है या बढ़ जाती है, तो वो ऑप्शन का प्रयोग ना करके आगे होने वाले प्रॉफिट का विकल्प चुन सकता है।


उदाहरण के लिए, यदि IBM के शेयर ₹190 प्रति शेयर पर ट्रेड हो रहे है और ट्रेडर ₹185 प्रति शेयर के मूल्य अपने स्टॉक को पुट ऑप्शन में ख़रीदता है तो उसे ₹5 प्रति शेयर का प्रीमीयम भी भरना होता है।


लेकिन जब अर्निंग रिपोर्ट जारी होती है तो जल्द ही शेयरों का मूल्य ₹170 प्रति शेयर तक चला जाता है।


तो भी पुट ऑप्शन के खरीददार को अपने IBM के शेयर ₹185 प्रति शेयर बेचने का अधिकार होता है।


इस प्रकार उसे ₹15 प्रति शेयर का लाभ मिलता है जिसमें से अगर ₹5 प्रति शेयर का प्रीमीयम घट भी जाये तो भी ₹10 प्रति शेयर के साथ मुनाफ़े में है।


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